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भारत माता की खोज

Siddharth Siddharth Follow Nov 07, 2020 · 6 mins read
भारत माता की खोज
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कौन हैं भारत माता? क्या स्वरुप है भारत माता का? क्या अस्तित्व महसूस किया जा सकता है भारत माता का? चाहें भारत की सीमा पर तैनात सैनिक हो, भारत के प्रधानमंत्री या फिर सिनेमा जगत की हस्तियां, सब भारत माता की जय के उद्घोष से अपने आसपास जोश की एक लहर की उत्पत्ति कर देते हैं| क्यों आती है जोश की ये लहर हम सब में जैसे ही हम सुनते हैं "भारत माता की जय"| कौन हैं ये भारत माता जिनकी विजय की हम कामना करते हैं और जिनकी विजय में हम अपनी विजय समझ लेते हैं?

सन् १९३६ में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू भारत सरकार अधिनियम १९३५ के तहत होने वाले चुनाव के लिए पूरे भारत में सार्वजनिक कार्यक्रमों की अगवानी कर रहे थे| चुनाव प्रचार के दौरान एक कार्यक्रम में नेहरू ने श्रोताओं से पूछा की कौन हैं ये भारत माता जिनकी विजय की हम सब लोग कामना करते हैं| कुछ समय पश्चात नेहरू ने खुद ही जवाब दिया की असल में भारत के करोड़ो लोग ही भारत माता हैं और हम इन्ही की विजय की कामना करते हैं| नेहरू ने ऐसा क्यों कहा और वर्त्तमान में ये बात कहाँ तक उचित है?

जब हम भारत माता के स्वरुप के बारे में सोचते हैं तो स्वाभाविक है की पहला दृश्य जो हमारी आँखों के सामने आता है वह होता है भारत के मानचित्र यानि की भारत के नक़्शे का| कितनी ही बार और कितनी ही जगह हमने भारत के मानचित्र के ऊपर एक देवी की छवि देखी है| इस देवी के मस्तक पर कश्मीर और हिमालय हैं तो भुजाओं में गुजरात और बंगाल तथा पैरों के पीछे दक्षिण भारत है| अब चूंकि उत्तरपूर्व भारत इस छवि में सहज तौर से स्थापित नहीं हो पाता तो कभी कभी देवी की साड़ी के एक छोर का पूर्व की तरफ विस्तार कर दिया जाता है| साथ ही में देवी के कर कमलों में भारत के राष्ट्रध्वज को भी प्रस्तुत किया जाता है| ये देवी की छवि जिसे अनगिनत लोग भारत माता मानकर पूजते हैं असल में सिर्फ कलाकार की कल्पना है और कुछ भी नहीं| अगर भारत का राष्ट्रध्वज तिरंगा न होकर कुछ और होता तो ये छवि भी बदल जाती| अगर वो भूभाग जो पाकिस्तान और बांग्लादेश हैं आज भी भारत का हिस्सा होते तो भी ये छवि बदल जाती| ऐसे ही विश्व में राष्ट्र नामक संस्थान की उत्पत्ति से पहले जब आज का भारत अनेक राज्यों में बंटा हुआ था तब क्या भारत माता नहीं थी यहाँ? अब वो भारत माता की छवि ही क्या जो ऐसे छोटे छोटे कारणों से बदल जाए| भारत माता का तो स्वरुप समय और मनुष्य के कर्मों से परे होना चाहिए ना| किन्तु फिर भी जैसे मंदिर में भगवान् की प्रतिमा का दर्शन करके मनुष्य उसे स्वयं ईश्वर का प्रत्यक्ष रूप मान लेता है, भारत माता की मानचित्र के आगे देवी की छवि भी ऐसा ही प्रेरणादायक काम करती है|

अगर भारत माता का स्वरुप अविरल, अटल और कालातीत है जैसे की हमने अभी पिछले भाग में माना तो इससे तो यही लगता है की प्राकृतिक सम्पदा ही भारत माता है| भारत की नदियां, भारत की मिट्टी, भारत का वातावरण, भारत की चोटियां और सागर, तथा इसकी विविध प्राकृतिक शोभा वो जीवनदायिनी ऊर्जा हैं जिनके ऊपर भारतीयों का बुनयादी अस्तित्व टिका हुआ है| ये सब बहुमूल्य प्राकृतिक सम्पदा ही तो अपने जल, अनाज, और कितने ही तरह के खनिज पदार्थों से हमारा पालन पोषण करती हैं| केवल ये ही नहीं अपितु भांति भांति के अनगिनत पशु-पक्षी और अन्य जीवजन्तु भी इस वातावरण के अक्षुण भाग हैं| सिर्फ और सिर्फ यही सब ऐसी रचनाएँ हैं जो हमेशा भारत को परिभाषित करती रहेंगी| चाहें मनुष्यजाति रहे या नहीं, चाहें राष्ट्र से हम किसी नए सामाजिक संस्थान की ओर चले जाएं, चाहें भारत का मानचित्र में कोई बदलाव आ जाये, परन्तु ये सभी प्राकृतिक रचनायें किसी न किसी रूप में हमेशा अपने अंदर भारत माता के अस्तित्व को सजीव रखेंगी|

फिर भी नेहरू का यह तर्क सही था की भारत में रहने वाले करोड़ो लोग ही भारत माता हैं| ऐसा इसलिए क्योंकि बिना मनुष्य के तो फसल अपने आप नहीं उपज सकती, खनिज पदार्थों से रोज़मर्रा के काम में आने वाले साधन अपने आप तो नहीं बन सकते, और ना ही भारत माता की कल्पना मनुष्य के बिना की जा सकती है| भारत माता की जय कहने से कोई प्रकृति की तो जीत की कामना हम नहीं करते हैं| भारत माता को एक प्राणहीन प्रतीकात्मक रूप से सजीव अपने परिश्रम से हम भारतीय ही बनाते हैं| हम भारतीय ही हैं जो प्रकृति की विशाल संपदा का भिन्न भिन्न रूपों में उपयोग करते हैं और साथ ही दुःखद तौर पर प्रकृति को प्रदूषित भी करते हैं| जब भी हम भारत माता की जय कहते हैं तो असल में हम यही कामना करते हैं की सभी भारतीयों की जीत हो, उन्नति हो, वृद्धि हो| हालाँकि मनुष्य भी प्रकृति का एक हिस्साभर है फिर भी इस दृष्टिकोड़ से प्रकृति और मनुष्य दोनों मिलकर भारत माता को परिभाषित करते हैं, एक के बिना दूसरे का होना अधूरा है|

इक्कीसवी सदी का भारत सिर्फ एक सभ्यता ही नहीं अपितु एक राष्ट्र भी है| भारतीय सभ्यता में प्रकृति और मनुष्य के बीच का रिश्ता धर्म तथा संस्कृति के आधार से ही निर्धारित हो जाता है| किन्तु भारत राष्ट्र में तो ना सिर्फ ये रिश्ता बल्कि भारतीयों के बीच का रिश्ता भी उस सुनहरे और श्रद्धास्पद आलेख से निर्धारित होता है जिसे हम संविधान कहते हैं| इस संविधान के मूल्यों की रक्षा करने के लिए ही सैनिक सीमा पर हर कष्ट का सामना करते हैं तथा प्रधानमंत्री भी इसी संविधान के सेवक मात्र हैं| संविधान की उद्देशिका में इस घोषणा का होना कि भारत एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न, समाजवादी ,पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य राष्ट्र है इस बात का प्रतीक है की भारत माता का स्वरुप आदर्शवादी रूप में कैसा होना चाहिए| इस घोषणा के तहत अगर हम प्रकृति को कोई श्रति पहुँचाते हैं तो कहीं न कहीं हम समाजवाद का उल्लंघन करते हैं| इस अभिप्राय से मुझे ऐसा लगता है की भारत माता का अस्तित्व भारत की बहुमूल्य प्रकृति, भारत के करोड़ों लोगों, और भारत के संविधान के मिश्रण से है| जब हम भारत माता की जय कहते हैं तो दरअसल हम इस प्रतिज्ञा को दोहराते हैं की हम भारत की प्रकृति की रक्षा करेंगे, हम सब भारतीयों से जातिनिरपेक्ष तथा धर्मनिरपेक्ष भाव से प्रेम करेंगे, और हम भारत के संविधान का पूर्णतया पालन करेंगे| आखिर ऐसा करने से ही तो इक्कीसवी सदी में भारतीय सभ्यता तथा भारत राष्ट्र की विजय होगी|

भारत माता की जय|

भारत माता की जय|

भारत माता की जय|

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