अभी कल ही की बात है जब मैं पंडित जसराज का एक पुराना कार्यक्रम देख रहा था और आज प्रातःकाल ही उनके देहांत की दुखद सूचना मिली। पंडित जसराज के चले जाने से भारतीय संगीत के क्षेत्र में एक ऐसी शून्यता आ गयी है जो शायद कभी भरी नहीं जा सकेगी। मैं शास्त्रीय संगीत का कोई बहुत बड़ा पारखी या जानकार तो नहीं हूँ कित्नु मुझे आज भी बहुत अच्छे से याद है वो समय जब वर्ष २०१६ के शुरुआत में मैं एक मुश्किल पड़ाव से गुज़र रहा था और मेरे मित्र निखिल ने मुझे पंडित जसराज का ये भजन भेजा था। कितने ही ऐसे दिन थे तब और कितनी ही रातें जब मैंने खुद को इस भजन की मधुर छाया में एक अलग ही निर्गुण अवस्था में पाया। ऐसी अलौकिक आवाज़, ऐसी अविस्मरणीय वाणी, ऐसी अद्भुत लय, ना तो मैंने पहले कभी सुनी थी और ना ही आज तक सुनी है। वर्ष २०१६ में ही जब निखिल और मुझे रामेश्वरम जाने का सौभाग्य मिला तब भी ये भजन और इससे जुड़े रामायण के किस्से हमारे सफर के साथी बने रहे और आज तक इस भजन की मन में एक अलग ही छाप है।
भगवान् अथवा ब्रह्म का अस्तित्व किस रूप में है ये तो मुझे नहीं पता है लेकिन पंडित जसराज को सुनकर हमेशा एहसास हुआ की इस रूप में ही होगा। समय के साथ पंडित जसराज के और भी भजन और राग सुनने का मुझे सुअवसर मिला लेकिन पंडितजी का ये भजन “कपि से उऋण हम नाही” आज तक मेरा सबसे प्रिय है। यही मैं आज आप सब के साथ यहाँ साझा कर रहा हूँ। पंडित जसराज को मेरी भावुक श्रद्धांजलि और शत् शत् नमन।